हमारी अधुरी कहानी – एक प्रेम कथा। (भाग – 3)
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शिर्षक (Title) - हमारी अधुरी कहानी – एक प्रेम कथा।
वर्ग (Category) – प्रेम कथा (Love Story)
लेखक (Author) – सी0 एन0 एजेक्स (C.N. AJAX)
अब जाकर सारे सवालों के जवाब मिलने लगे...क्यों गौरी पाठशाला के बाहर छुप कर शिक्षक की बातें सुनती थी, क्यों कजरी चाची के दो दिनों तक नहीं आने के बावजुद भी, वो नहीं आने की खबर भिजवा न सकी, गौरी के गर्दन और बाजु में जख्म कैसे लगे।
बस एक बात समझ में नहीं आ रही थी, तो ये वो टिफ़िन किसने रखा था ?
पर अब मेरे दिमाग में जो घुम रही थी, वो थी गौरी की कहानी।
गौरी बिलासपुर में शुरु से नहीं रही थी, वो यहाँ अपने मामा के यहाँ रह रही थी। गौरी के माता-पिता छ्त्तीसगढ़ के मुख्य शहर से कोसों दुर एक गांव में रहते थे और गौरी वहीं पर पली बढ़ी।
गौरी को पढ़ने का बडा शौख था पर गाँव में बेहतर शिक्षा के उपाय नहीं होने के कारण उसकी पढ़ाई देर से शुरु हुई और उसकी शिक्षा का स्तर वैसा नहीं थी जैसा होना चाहिये था। जब वह 15 साल की हुई तो कक्षा 6 में पढ़ रही थी।
उसके पिता उसे बहुत आगे तक पढ़ाना चाहते थे क्योंकि वह पढ़ाई में बहुत तेज थी। उसके पिता ने गाँव के जमीनदार से कुछ कर्ज़ ले रखा था और जमीनदार की नज़र गौरी पर पडी तो उसने कर्ज़ के दस्तावेजों में उलटफेर करके गौरी के पिता से कर्ज़ के बदले उसकी बेटी मांग ली।
एक बुढे आदमी से गौरी का ब्याह कराना होगा इस बात से गौरी के पिता घबरा गये और रातों रात अपनी पत्नि (कजरी) और बेटी को अपने मामा यहाँ भेज दिया और पास की एक नदी में गौरी और अपनी पत्नि के बचे कुछ कपड़े फेंक दिये जिससे वहाँ के लोगों को लगे की उसका सारा परिवार नदी में डुब चुका है। जमीनदार बहुत ही क्रुर और चालाक था उसे इस बात का यकिन दिलाना मुश्किल था, यह बात गौरी के पिता भी जानते थे इसलिए ये सब सच लगे, उन्होने खुद को एक खेत में फाँसी पर लटका लिया।
तब से गौरी बिलासपुर में है और ज्यादा बाहर आना जाना नहीं करती है। उसे पढ़ने का शौक अब भी है पर अब वो कोई डिग्री हासिल करने के लिए नहीं बल्कि अपने पिता के सपने को पुरा के लिए पढ़ना चाहती है।
समस्या यह है कि यदि वो स्कुल जाती है और कोई उसे पहचान ले और उसकी खबर जमीनदार को दे दे तो वह फिर उसी मुसीबत में फंस जायेगी जिससे बचाने के लिए उसके पिता ने अपनी जान गँवा दी। इस बात के डर से उसके मामा भी परेशान रहते है और गौरी को बाहर नहीं निकलने देते हैं।
जब भी उसके मामा को गौरी के बाहर होने की भनक लगती तो वो शराब पीकर गौरी और उसकी मां को खुब मारते – पिटते। गौरी की माँ यानि कजरी चाची लोगों के घर में काम करके पैसे कमातीं है और अपना घर चलाती हैं। गौरी के मामा उन दोनो को अपने घर में रहने के बदले पैसे लेते है जिसे वो शराब में उड़ा देता है।
कुछ दिनो पहले किसी अंजान व्यक्ति ने स्कुल के शिक्षक से गौरी के बारे में पुछा, तो शिक्षक ने कहा उनके कक्षा ऐसी कोई लडकी नहीं है। उसी दिन के बाद से उस स्कुल के शिक्षक नें एक दुसरे आदमी को छुप के निगरानी करने के लिए तैनात कर दिया और गौरी इससे अंजान थी, वह जैसे छुप के शिक्षक की बातें सुना रही थी, पीछे उस पर घात लगाये व्यक्ति ने उसे पकड़ लिया और उसे शिक्षक के हवाले कर दिया।
शिक्षक और गौरी के मामा दोनो दोस्त थे, सो शिक्षक भी गौरी को जानते थे। शिक्षक ने यह बात गौरी के मामा को बता दी।
इसके बाद मामा ने शराब पीकर गौरी और कजरी चाची दोनो को खुब पीटा। जिसकी वजह से कजरी चाची का पैर में मोच आ गयी और वो काम पर नहीं आ पा रही थीं और न ही खबर भिजवा सक रही थीं। गौरी के गर्दन और बाजु में जख्म के निशान उसी मार के वजह से थे।
उसे घर के खर्चे की भी फिक्र थी, सो काम करने के लिए अपनी मां और मामा से आज्ञा ले कर आरही थी।
उसकी कहानी सुनकर मैं स्तब्ध था, मैं उसे क्या कहुँ मैं समझ नहीं पा रहा था। उसकी और कजरी चाची इस हालत का जिम्मेदार सिर्फ उसका मामा ही नहीं बल्कि मैं भी था क्योंकि गौरी के साथ जिस दिन ये घटना हुई उसके ठीक तीन दिन पहले जिस अंजान व्यक्ति ने गौरी के बारे में उस शिक्षक से पुछताछ की वो कोई और नहीं मैं ही था।
पर मैंने किसी का बुरा नहीं चाहा। उसकी कहानी सुनते सुनते वक्त का पता नहीं चला और ऑफिस के लिए हमें देर होने लगी। गौरी ने सुबह नश्ता और दोपहर का खाना तैयार कर दिया और अपने घर चली गई। हम भी तैयार हो कर ऑफिस के लिए निकल पड़े।
पुरे रास्ते मैं इसी उधेड़बुन में था कि मैं अपनी गलती के बारे में गौरी को बताउँ कैसे? कैलाश भी सब कुछ जानता था उसने मुझे समझाया की सब ठीक हो जायेगा धीरे धीरे।
हम ऑफिस पहुंचने वाले थे। आज मैंने स्कुल के बाहर देखा तो वहां कोई छुपा नहीं था जो उस शिक्षक के बाते सुने। ऑफिस में भी किसी काम में मन लग नहीं रहा था। बस गौरी का मासुम चेहरा बार बार आँखों के सामने आ जाता और उसकी आँखे मुझे ऐसे देखती जैसे वो मुझे दोषी समझती हों।
मैं एक बात बार सोच रहा काश कि मैंने उसके बारे में नहीं पुछता तो शायद सब ठीक होता।
शाम हुई हम घर वापस आये, घर वापस आकर भी कुछ अच्छा नहीं लग रहा था, कजरी चाची से भी कुछ अपना सा लगाव हो चुका था।
सुबह हुई, गौरी आई और काम पर लग गई। मैं तय कर लिया था कि उसे सब बता दुँगा पर हिम्मत नहीं हो रही थी। फिर मैं उसके पास गया और उससे पुछा – कजरी चाची कैसी है अब।
गौरी – जी...ठीक है। अब दर्द से भी राहत है।
मैंने कहा – गौरी, तुम बहुत बहादुर लड़की हो... वैसे तुम आगे पढ़ाई करना चाहती हो?
गौरी – जी... करना तो चाहती हुँ पर अब कोई रास्ता नहीं है।
मैंने कहा – रास्ते होते नहीं बनाने पडते है।
गौरी – पर...मैं अब पढ़ाई कहाँ करुंगी?
मैंने कहा – मैं पढ़ाउँगा तुम्हें ... क्या तुम म्म... मेरे पास ट्युशन लेने के लिए आ सकती हो।
गौरी – नहीं (इंकार करते हुए कहा)... बिना वजह आपको तकलिफ होगी।
मैंने कहा – अगर तुम पढ़ाई छोड़ दोगी तो मुझे तकलिफ होगी। तुम बहादुर हो और किस्मत भी बहादुरों का साथ देती है।
गौरी – (हल्की आशा भरी मुस्कान के साथ)... यही बात मेरे पिता जी भी कहते थे...पर... ।
मैंने बीच में टोकते हुए कहा – तो अपने पिता के लिए पढ़ाई करना ... और समझना तुम पढ़ाई नहीं संघर्ष कर रही हो।
गौरी मान गयी और मैंने उसके घर में कजरी चाची और गौरी के मामा को मना लिया, कैलाश भी मदद करने को तैयार था ...
और कल से एक नये कल का आगाज़ होने वाला था।
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